विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्य, यात्रा एवं गोचर ग्रह फलादेश करने में जन्म राशि से ही विचार करना चाहिए।
वर-वधू किसी एक की अज्ञात जन्म राशि होने पर प्रचलित नाम राशियों से कुंडली मिलान देखना चाहिए
अन्यथा अनिष्ट की संभावना होती है।
कितने गुण मिलान शुभ
अष्टकूटों के कुल गुण 36 में से आधे 18 गुण मिलान होने शुभ होने की परम्परा है।
नाड़ी दोष परिहार
(१) ब्राह्मण वर्ण के लिए नाड़ी दोष, क्षत्रिय को वर्ण दोष,वैश्य के लिए गुणदोष और शुद्रों को योनि दोष त्याज्य है।
(२) यदि वर -कन्या की राशि एक ही हो तथा नक्षत्र भिन्न भिन्न हो अथवा नक्षत्र एक ही हो तथा नक्षत्र चरण भिन्न भिन्न हो तो नाड़ी और गण दोष नहीं होता है।
(३) यदि आवश्यकता में स्वर्णादि रत्न एवं गोदान तथा मृत्युजंय जाप कराने से नाड़ी दोष की शांति कराई जा सकती है।
दुष्ट भकूट -षडाष्टक,नवम पंचम एवं द्विर्द्वादश परिहार
यदि वर-कन्या की राशि परस्पर 6-8, 9-5, 2-12, हो मिलान निषेध होता है।
(१) यदि वर-कन्या की राशियों का स्वामी एक ग्रह हो
या परस्पर मित्रता हो या दोनों की नाड़ी एक न हो दुष्ट कूट दोष न हो कर मिलान शुभ होता है।
इसी प्रकार यदि वर-कन्या के नवांश स्वामियों में मित्रता तथा राशि नाथों में शत्रु ता रहने पर भी नाड़ी एवं तारा शुद्धि हो तो विवाह शुभ होता है।
(२) द्विर्द्वादश योग में तांबा, षडाष्टक में सोना,नवमपंचम दोष में दो गाय एवं धर्मादि दोष में सोना दान कर विवाह
शुभ होता है।
ग्रह मैत्री से गण, योनि, वर्ण, एवं षडाष्टक दोष परिहार
ग्रह मैत्री होने पर चारों दोष शान्ति हो कर विवाह शुभ होता है।
गण दोष विशेष में वर-कन्या के राशि या नवांश के स्वामियों में मित्रता हो तो गणदोष नहीं होता है।
मंगलीक योग एवं परिहार
(१)लग्न या चंद्रमा से 1,4,7,8,12, भाव में मंगल होने पर जन्म कुंडली मंगलीक होती है ।
कन्या के मंगलीक होने पर वर को हानि या वर के मंगलीक होने पर कन्या को हानिकारक होता है।
(२) वर-कन्या दोनों के मंगलीक होने पर विवाह शुभ होता है।
(३) यदि राशि मैत्री एवं एक ही गण हो या 27 से अधिक गुण मिले तो मंगल दोष अविचारणीय होता है।
(४) सप्तम या अष्टम में बैठे मंगल पर गुरू की दृष्टि हो तो मंगल दोष समाप्त हो कर सर्व सुख प्रदायक हो जाता है।
(५) अस्त, संधिगत या नीच राशि गत , इस प्रकार बलहीन मंगल का दोष नगण्य होता है अथवा गुरु से दृष्ट या राहु से युत मंगल की स्थिति में भी मंगल दोष नहीं होता है।
(६) यदि मेष राशि का मंगल लग्न में, वृश्चिक का चौथा भाव में, मकर का सातवें भाव में,कर्क का आठवें भाव में या धनु का मंगल बारहवें भाव में हो तो भी मंगल दोष नहीं होता है।