👉ज्योतिष शास्त्र भविष्य दर्शन की आध्यात्मिक विद्या है। भारतवर्ष में चिकित्साशास्त्र (आयुर्वेद) का ज्योतिष से बहुत गहरा संबंध है। होमियोपैथ की उत्पत्ति भी ज्योतिष शास्त्र के आधार पर ही हुआ है I
👉जन्मकुण्डली व्यक्ति के जन्म के समय ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रह नक्षत्रों का मानचित्र होती है, जिसका अध्ययन कर जन्म के समय ही यह बताया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को उसके जीवन में कौन-कौन से रोग होंगे।
👉चिकित्सा शास्त्र व्यक्ति को रोग होने के पश्चात रोग के प्रकार का आभास देता है। आयुर्वेद शास्त्र में अनिष्ट ग्रहों का विचार कर रोग का उपचार विभिन्न रत्नों का उपयोग और रत्नों की भस्म का प्रयोग कर किया जाता है।
👉ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोगों की उत्पत्ति अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव से एवं पूर्वजन्म के अवांछित संचित कर्मो के प्रभाव से बताई गई है। अनिष्ट ग्रहों के निवारण के लिए पूजा, पाठ, मंत्र जप, यंत्र धारण, विभिन्न प्रकार के दान एवं रत्न धारण आदि साधन ज्योतिष शास्त्र में उल्लेखित है।
👉ग्रहों के अनिष्ट प्रभाव दूर करने के लिये रत्न धारण करने की बिल्कुल सार्थक है। इसके पीछे विज्ञान का रहस्य छिपा है और पूजा विधान भी विज्ञान सम्मत है। ध्वनि तरंगों का प्रभाव और उनका वैज्ञानिक उपयोग अब हमारे लिये रहस्यमय नहीं है। इस पर पर्याप्त शोध किया जा चुका है और किया जा रहा है।
👉आज के भौतिक और औद्योगिक युग में तरह-तरह के रोगों का विकास हुआ है। रक्तचाप, डायबिटीज, कैंसर, ह्वदय रोग, एलर्जी, अस्थमा, माईग्रेन आदि औद्योगिक युग की देन है। इसके अतिरिक्त भी कई बीमारियां हैं, जिनकी न तो चिकित्सा शास्त्रियों को जानकारी है और न उनका उपचार ही सम्भव हो सका है। ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियां और नवग्रह अपनी प्रकृति एवं गुणों के आधार पर व्यक्ति के अंगों और बीमारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
👉जन्मकुण्डली में छठा भाव बीमारी और अष्टम भाव मृत्यु और उसके कारणों पर प्रकाश डालते हैं। बीमारी पर उपचारार्थ व्यय भी करना होता है, उसका विचार जन्मकुण्डली के द्वादश भाव से किया जाता है। इन भावों में स्थित ग्रह और इन भावों पर दृष्टि डालने वाले ग्रह व्यक्ति को अपनी महादशा, अंतर्दशा और गोचर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। इन बीमारियों का कुण्डली से अध्ययन करके पूर्वानुमान लगाकर अनुकूल रत्न धारण करने, ग्रहशांति कराने एवं मंत्र आदि का जाप करने से बचा जा सकता है।
👉जन्म कुंडली मे 12 भावों से रोग विचार—
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👉जन्म कुंडली के 12 भावों से रोगों की पहचान की जाती और घटनाओं का आंकलन भी किया जाता है. जन्म कुंडली के पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक शरीर के विभिन्न अंगों को देखा जाता है और जिस अंग में पीड़ा होती है तो उस अंग से संबंधित भाव अथवा भावेश की भूमिका रोग देने में सक्षम रहती है अथवा उस भाव से संबंधित दशा में योग बनते हैं. जन्म कुंडली के किस भाव से कौन से रोग का विचार किया जाता है, उन सभी बातों की चर्चा इस लेख के माध्यम से की जाएगी.
👉प्रथम भावगत रोग—-
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👉जन्म कुंडली के पहले भाव से सिर दर्द, मानसिक रोग, नजला तथा दिमागी कमजोरी का विचार किया जाता है. इस भाव से व्यक्ति के समस्त स्वास्थ्य का पता लगता है कि वह मानसिक अथवा शारीरिक रुप से स्वस्थ रहेगा अथवा नहीं.
👉दूसरा भावगत रोग—–
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👉जन्म कुंडली के दूसरे भाव को मारक भाव भी कहा जाता है. इस भाव से नेत्र रोग, कानों के रोग, मुँह के रोग, नासा रोग, दाँतों के रोग, गले की खराबी आदि का विश्लेषण किया जाता है.
👉तीसरा भावगत रोग—–
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👉जन्म कुंडली के तीसरे भाव से कण्ठ की खराबी, गण्डमाला, श्वास, खाँसी, दमा, फेफड़े के रोग, हाथ में होने वाले विकार जैसे लूलापन आदि देखा जाता है.
👉चौथा भावगत रोग –
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👉इस भाव से छाती, हृदय एवं पसलियों के रोगों का विचार किया जाता है. मानसिक विकारों अथवा पागलपन आदि का विचार भी इस भाव से किया जाता है.
👉पांचवाँ भाव – —-
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इस भाव से मन्दाग्नि, अरुचि, पित्त रोग, जिगर, तिल्ली तथा गुर्दे के रोगों का विचार किया जाता है. इस भाव से नाभि से ऊपपर का पेट देखा जाता है तो पेट से जुड़े रोग भी यहाँ से देखे जाते हैं.
👉छठा भावगत रोग –
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👉इस भाव से नाभि के नीचे का हिस्सा देखा जाता है तो इस स्थान से जुड़े रोगों को इस भाव से देखा जाएगा. कमर को भी इस भाव से देखा जाता है तो कमर से जुड़े रोग भी यहाँ से देखेगें. इस भाव से किडनी से संबंधित रोग भी देखे जाते है. अपेन्डिक्स, आँतों की बीमारी, हर्निया आदि का विचार किया जाता है.
👉सातवाँ भावगत रोग –
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👉इस भाव से प्रमेह, मधुमेह, प्रदर, उपदंश, पथरी, (मतान्तर से मधुमेह तथा पथरी को छठे भाव से भी देखा जाता है) गर्भाशय के रोग, बस्ति में होने वाले रोगों का विचार किया जाता है.
👉आठवाँ भावगत रोग –
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👉जन्म कुंडली के आठवें भाव को गुप्त स्थान भी माना जाता है इसलिए इस भाव से गुप्त रोग अर्थात जनेन्द्रिय से जुड़े रोग हो सकते हैं. वीर्य-विकार, अर्श, भगंदर, उपदंश, संसर्गजन्य रोग, वृषण रोग तथा मूत्रकृच्छ का विचार किया जाता है.
👉नवम भावगत रोग –
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👉कुंडली के नवम भाव से स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी रोग देखे जाते हैं. यकृत दोष, रक्त विकार, वायु विकार, कूल्हे का दर्द तथा मज्जा रोगों का विचार किया जाता है.
👉दशम भावगत रोग –
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👉जन्म कुंडली के दशम भाव से गठिया, कम्पवात, चर्म रोग, घुटने का दर्द तथा अन्य वायु विकारों का आंकलन किया जाता है.
👉एकादश भावगत रोग –
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👉कुंडली के एकादश भाव से पैर में चोट, पैर की हड्डी टूटना, पिंडलियों में दर्द, शीत विकार तथा रक्त विकार देखे जाते हैं.
👉बारहवाँ भावगत रोग –
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👉कुंडली के इस भाव से असहिष्णुता अर्थात एलर्जी, कमजोरी, नेत्र विकार, पोलियो, शरीर में रोगों के प्रति प्रतिरोध की क्षमता की कमी का विचार किया जाता है.
👉जन्म कुंडली में राशि व उनसे होने वाले रोग
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👉मेष – Aries : सेलेब्रिटीज और हाई क्लास के लोगों को उनकी जीवनशैली के कारण अत्यधिक मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर इस राशि के लोग स्वस्थ रहते हैं क्योंकि उनका स्वामी ग्रह मंगल होता है, जो रोगों से लड़ने में सहायक सिद्ध होता है। मगर फिर भी इन्हें सिर से संबंधित कष्टों के होने का डर रह सकता है। जैसे सिरदर्द, लकवा, मिर्गी, अनिद्रा। इन्हें चोट और दुर्घटना से भी संभलकर रहने की जरूरत होती है।
👉वृषभ – Taurus : वृषभ इस राशि के लोग आराम पसंद होते हैं। अपनी जीवनशैली के कारण इन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना होता है। वृद्धवस्था में इन्हें अधिक परेशानी होती है। जीवनशैली संतुलित रखकर यह रोग को अपके काफी हद तक दूर रह सकते हैं। इस राशि के लोगों के गले, वॉकल कॉर्ड और थॉयराइड ग्लैंड्स पर वृषभ का स्वामित्व होता है। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी के अनुसार, उनके गले में परेशानी होने के साथ ही थॉयराइड, टॉन्सिल, पायरिया, लकवा, जीभ एवं हड्डियों के रोग की आशंका रहती है। हालांकि, ग्रह अच्छे बैठे हों, तो वे शानदार गायक बनते हैं।
👉मिथुन – Gemini : ये लोग बातें करते हुए हाथों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। इनके इशारों की अपनी लैंग्वेज होती है।राशि के लोग ज्यादातर कलात्मक क्षेत्र से जुड़े होते हैं, जिनमें मन-मस्तिष्क के बेहतर तालमेल की जरूरत होती है। जब कभी इनके ऊपर अशुभ ग्रह का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो इनके कमजोर पाचन तंत्र को भी वह प्रभावित करता है और इससे संबंधित रोग की आशंका रहती है। इन्हें सिरदर्द व रक्तचाप संबंधी बीमारियों का भी सामना करना पड़ सकता है। जीभ और श्वास संबंधी रोग की भी आशंका रहती है। इन्हें नर्वस सिस्टम से संबंधित परेशानी होने का खतरा अधिक होता है, जिसमें उन्हें सांस लेने में परेशानी और घबराहट की समस्या हो सकती है।
👉कर्क – Cancer : इन्हें अपने भोजन का खास ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। इन्हें चटपटा भोजन काफी पसंद होता है जिससे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह काफी कल्पनाशील प्रकृति के भी होते हैं। इन्हें हृदय, फेफड़ों, स्तन और रक्त संबंधी समस्याओं के प्रति सजग रहने की जरूरत होती है। छाती, स्तन और पेट पर इस राशि का अधिकार होता है। इन्हें अपच की परेशानी होती है और खान-पान संबंधी अन्य परेशानियां भी हो सकती हैं, जो पेट से जुड़ी हुई हों।
😀सिंह – Leo : शेर जैसे दिल वाले इस राशि के लोगों को दिल की परेशानी सिंह राशि के जातक स्वभाव से काफी संवेदनशील होते हैं। इसलिए अपने मन के मुताबिक चीजें न होने की वजह से इन्हें मानसिक रोग होने की आशंका रहती है। इसके अलावा इस राशि के लोगों को रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी या चोट लगने का भी खतरा रहता है। इस राशि के लोगों को दिन में एक दो बार तो उल्टा खड़ा होना चाहिए, ताकि उनके खून का दौड़ाव सही हो सके और वे रीढ़ की हड्डी को फिर से सही रख सकें।
👉कन्या – Virgo : इस राशि के लोगों को कब्ज की परेशानी हो सकती है। हड्डी, मांसपेशियों, फेफड़ो, पाचन तंत्र और आंत से संबंधित बीमारियां होने की आशंका होती है। इन्हें अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इनका शरीर लगातार गैर-जरूरी चीजों को बाहर करने में ही लगा रहता है।
👉तुला – Libra : इस राशि के जातक संतुलन बनाना अच्छी तरह जानते हैं। जीवन में संतुलन बनाने के लिए तुला इतने जुनूनी हो सकते हैं कि वे भीतर के संतुलन को खो सकते हैं। उन्हें त्वचा और पीठ के दर्द की परेशानी हो सकती है। राशि के जातकों को आंत से लेकर जांघ तक शरीर के विभिन्न हिस्सों से संबंधित रोगों के होने की आशंका रहती है। इसके अलावा यह अस्थमा, एलर्जी, फ्लू जैसी परेशानियों का भी सामना कर सकते हैं।
👉वृश्चिक – Scorpius : इस राशि के लोग अंतरंग संबंधों को लेकर काफी सक्रिय होते हैं। लिहाजा इनके प्रजनन अंग और यौन बीमारियों के होने की आशंका अधिक होती है। इस राशि के जातकों को यूटीआई, यीस्ट इंफेक्शन, और बैक्टीरियल इंफेक्शन से ग्रस्त होने , पाचन संबंधी रोगों के होने की आशंका रहती है। जिस वजह से कुछ लोग अपने अवसाद को मिटाने के लिए संयमित खानपान नहीं कर पाते हैं, जिसका सीधा असर इनके वजन पर पड़ता है। आमतौर पर इन्हें अनिद्रा, प्रजनन, मूत्र, रक्त संबंधी रोगों के प्रति सचेत रहना चाहिए।
👉धनु – Sagittarius : इन्हें पार्टी करना और घूमना काफी पसंद होता है। वे हमेशा बाहर जाते हैं धनु राशि के लोग जीवन में बड़ी से बड़ी परेशानियों का हंसकर सामना करने में यकीन करते हैं। और नई जगहों की तलाश में हमेशा लगे रहते हैं। इन्हें कूल्हों, जांघों और लिवर से संबंधित परेशानी हो सकती है।
👉मकर – Capricornus : मकर इनकी राशि में सूर्य कमजोर रहने के चलते जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। इन्हें लगता है कि सारी दुनिया का बोझ इन्हीं के कंधों पर है और ये उसी तरह काम करते हैं।मगर, उनकी इसी आदत के चलते हृदय रोग, जोड़ों, घुटनों या पैरों की हड्डी टूटने या गंभीर चोट आने का खतरा भी रहता है। इस राशि के लोगों की त्वचा भी काफी संवेदनशील होती है।
👉कुंभ – Aquarius : इस राशि के लोगों को किसी भी तरह के संक्रमण होने का खतरा अधिक रहता है। जिस वजह से आमतौर पर इन्हें रक्त, गले संबंधी इन्फेक्शन से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इस राशि के लोगों को श्वास, टखने, पैर, कान और नर्वस सिस्टम संबंधी रोग होने की आशंका रहती है।
👉मीन – Pisces : इस राशि के लोग नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने वाले होते हैं, जिससे उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित हो सकती है। ये लोग ड्रग्स, शराब या अन्य किसी नशे के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। इन लोगों को पैरों और लसीका तंत्र से संबंधित परेशानी हो सकती है। रक्त और आंख संबंधी रोगों के प्रति सचेत रहने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा इनके फेफड़े कमजोर होने के चलते अस्थमा, एलर्जी या फ्लू की शिकायत भी रह सकती है। बदलते मौसम में इन्हें अपना खास ध्यान रखने की जरूरत होती है।
👉जन्म कुंडली में ग्रहो से संबंधित होने वाले रोग व उपाय
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👉चिकित्सा ज्योतिष में हर ग्रह शरीर के किसी ना किसी अंग से संबंधित होता है. कुंडली में जब संबंधित ग्रह की दशा होती है और गोचर भी प्रतिकूल चल रहा होता है तब उस ग्रह से संबंधित शारीरिक समस्याओं व्यक्ति को होकर गुजरना पड़ सकता है. आइए ग्रह और उनसे संबंधित शरीर के अंग व होने वाले रोगों के बारे में जानने का प्रयत्न करते हैं.
1—👉सूर्य | Sun Planet
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सूर्य को हड्डी का मुख्य कारक माना गया है. इसके अधिकार क्षेत्र में पेट, दांई आँख, हृदय, त्वचा, सिर तथा व्यक्ति का शारीरिक गठन आता है. जब जन्म कुंडली में सूर्य की दशा चलती है तब इन्हीं सभी क्षेत्रों से संबंधित शारीरिक कष्ट व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. यदि जन्म कुंडली में सूर्य निर्बली है तभी इससे संबंधित बीमारियाँ होने की संभावना बनती है अन्यथा नहीं. इसके अतिरिक्त व्यक्ति को तेज बुखार, कोढ़, दिमागी परेशानियाँ व पुराने रोग होने की संभावनाएँ सूर्य की दशा/अन्तर्दशा में होने की संभावना बनती है.
👉उपाय : ऐसे में भगवान राम की आराधना करे | आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करे, सूर्य को आर्घ्य दे, गायत्री मंत्र का जाप करे | ताँबा, गेहूँ एवं गुड का दान करें। प्रत्येक कार्य का प्रारंभ मीठा खाकर करें। ताबें के एक टुकड़े को काटकर उसके दो भाग करें। एक को पानी में बहा दें तथा दूसरे को जीवन भर साथ रखें। ॐ रं रवये नमः या ॐ घृणी सूर्याय नमः १०८ बार (१ माला) जाप करे|
2—👉चंद्रमा | Moon Planet
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चंद्रमा को मुख्य रुप से मन का कारक ग्रह माना गया है. यह ह्रदय, फेफड़े, बांई आँख, छाती, दिमाग, रक्त, शरीर के तरल पदार्थ, भोजन नली, आंतो, गुरदे व लसीका वाहिनी का भी कारक माना गया है. इनसे संबंधित बीमारियों के अतिरिक्त गर्भाशय के रोग हो सकते हैं. नींद कम आने की बीमारी हो सकती है. बुद्धि मंद भी चंद्रमा के पीड़ित होने पर हो सकती है. दमा, अतिसार, खून आदि की कमी चंद्रमा के अधिकार में आती है. जल से होने वाले रोगों की संभावना बनती है. बहुमूत्र, उल्टी, महिलाओ में माहवारी आदि की गड़बड़ भी चंद्रमा के कमजोर होने पर हो सकती हैं. अपेन्डिक्स, स्तनीय ग्रंथियों के रोग, कफ तथा सर्दी से जुड़े रोग हो सकते हैं. अंडवृद्धि भी चंद्रमा के कमजोर होने पर होती है.
उपाय : सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चाँदी का टुकड़ा लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा दें तथा दूसरे को अपने पास रखें। कुंडली के छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है। यदि चंद्र बारहवाँ हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएँ और ना ही दूध पिलाएँ। सोमवार को सफ़ेद वास्तु जैसे दही,चीनी, चावल,सफ़ेद वस्त्र, १ जोड़ा जनेऊ,दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है |
👉मंगल | Mars Planet
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👉मंगल के अधिकार में रक्त, मज्जा, ऊर्जा, गर्दन, रगें, गुप्तांग, गर्दन, लाल रक्त कोशिकाएँ, गुदा, स्त्री अंग तथा शारीरिक शक्ति आती है. मंगल यदि कुंडली में पीड़ित हो तब इन्हीं से संबंधित रोग मंगल की दशा में हो सकते हैं. इसके अतिरिक्त सिर के रोग, विषाक्तता, चोट लगना व घाव होना सभी मंगल से संबंधित हैं. आँखों का दुखना, कोढ़, खुजली होना, रक्तचाप होना, ऊर्जाशक्ति का ह्रास होना, स्त्री अंगों के रोग, हड्डी का चटक जाना, फोडे़-फुंसी, कैंसर, टयूमर होना, बवासीर होना, माहवारी बिगड़ना, छाले होना, आमातिसार, गुदा के रोग, चेचक, भगंदर तथा हर्णिया आदि रोग हो सकते हैं. यह रोग तभी होगें जब कुंडली में मंगल पीड़ित अवस्था में हो अन्यथा नहीं.
👉उपाय : ताँबा, गेहूँ एवं गुड,लाल कपडा,माचिस का दान करें। तंदूर की मीठी रोटी दान करें। बहते पानी में रेवड़ी व बताशा बहाएँ, मसूर की दाल दान में दें। हनुमद आराधना करना,हनुमान जी को चोला अर्पित करना,हनुमान मंदिर में ध्वजा दान करना, बंदरो को चने खिलाना,हनुमान चालीसा,बजरंग बाण,हनुमानाष्टक,सुंदरकांड का पाठ और ॐ अं अंगारकाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है |
👉बुध | Mercury Planet
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👉बुध के अधिकार क्षेत्र में छाती, स्नायु तंत्र, त्वचा, नाभि, नाक, गाल ब्लैडर, नसें, फेफड़े, जीभ, बाजु, चेहरा, बाल आदि आते हैं. बुध यदि कुंडली में पीड़ित है तब इन्हीं क्षेत्रो से संबंधित बीमारी होने की संभावना बली होती है. इसके अलावा छाती व स्नायु से जुड़े रोग हो सकते हैं. मिर्गी रोग होने की संभावना बनती है. नाक व गाल ब्लैडर से जुड़े रोग हो सकते हैं. टायफाईड होना, पागलपन, लकवा मार जाना, दौरे पड़ना, अल्सर होना, कोलेरा, चक्कर आना आदि रोग होने की संभावना बनती है.
👉उपाय : भगवान गणेश व माँ दुर्गा की आराधना करे | गौ सेवा करे | काले कुत्ते को इमरती देना लाभकारी होता है | नाक छिदवाएँ। ताबें के प्लेट में छेद करके बहते पानी में बहाएँ। अपने भोजन में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्तों को और एक हिस्सा कौवे को दें, या अपने हाथ से गाय को हरा चारा, हरा साग खिलाये। उड़दकी दाल का सेवन करे व दान करे | बालिकाओं को भोजन कराएँ। किन्नेरो को हरी साडी, सुहाग सामग्री दान देना भी बहुत चमत्कारी है | ॐ बुं बुद्धाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है आथवा गणेशअथर्वशीर्ष का पाठ करे | पन्ना धारण करे या हरे वस्त्र धारण करे यदि संभव न हो तो हरा रुमाल साथ रक्खे |
👉बृहस्पति | Jupiter Planet
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👉बृहस्पति के अन्तर्गत जांघे, चर्बी, मस्तिष्क, जिगर, गुरदे, फेफड़े, कान, जीभ, स्मरणशक्ति, स्पलीन आदि अंग आते हैं. कुंडली में बृहस्पति के पीड़ित होने पर इन्हीं से संबंधित बीमारियाँ होने की संभावना बनती है. कानों के रोग, बहुमूत्र, जीभ लड़खड़ाना, स्मरणशक्ति कमजोर हो जाना, पेनक्रियाज से जुड़े रोग हो सकते हैं. स्पलीन व जलोदर के रोग, पीलिया, टयूमर, मूत्र में सफेद पदार्थ का आना, रक्त विषाक्त होना, अजीर्ण व अपच होना, फोड़ा आदि होना सभी बृहस्पति के अन्तर्गत आते हैं. डायबिटिज होने में बृहस्पति की भूमिका होती है.
👉उपाय : ब्रह्मण का यथोचित सामान करे | माथे या नाभी पर केसर का तिलक लगाएँ। कलाई में पीला रेशमी धागा बांधे | संभव हो तो पुखराज धारण करे अन्यथा पीले वस्त्र या हल्दी की कड़ी गांड साथ रक्खे | कोई भी अच्छा कार्य करने के पूर्व अपना नाक साफ करें। दान में हल्दी, दाल, पीतल का पत्र, कोई धार्मिक पुस्तक, १ जोड़ा जनेऊ, पीले वस्त्र, केला, केसर,पीले मिस्ठान, दक्षिणा आदि देवें। विष्णु आराधना करे | ॐ व्री वृहस्पतये नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है |
👉 शुक्र | Venus Planet
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👉शुक्र के अन्तर्गत चेहरा, आंखों की रोशनी, गुप्तांग, मूत्र, वीर्य, शरीर की चमक व आभा, गला, शरीर व ग्रंथियों में जल होना, ठोढ़ी आदि आते हैं. शुक्र के पीड़ित होने व इसकी दशा/अन्तर्दशा आने पर इनसे संबंधित बीमारियाँ हो सकती है. किडनी भी शुक्र के ही अधिकार में आती है इसलिए किडनी से संबंधित रोग भी हो सकते हैं. आँखों की रोशनी का कारक शुक्र होता है इसलिए इसके पीड़ित होने पर नजर कमजोर हो जाती है. यौन रोग, गले की बीमारियाँ, शरीर की चमक कम होना, नपुंसकता, बुखार व ग्रंथियों में रोग होना, सुजाक रोग, उपदंश, गठिया, रक्त की कमी होना आदि रोग शुक्र के पीड़ित होने पर होते हैं.
👉उपाय : माँ लक्ष्मी की सेवा आराधना करे | श्री सूक्त का पाठ करे | खोये के मिस्ठान व मिश्री का भोग लगाये | ब्रह्मण ब्रह्मणि की सेवा करे | स्वयं के भोजन में से गाय को प्रतिदिन कुछ हिस्सा अवश्य दें। कन्या भोजन कराये | ज्वार दान करें। गरीब बच्चो व विद्यार्थिओं में अध्यन सामग्री का वितरण करे | नि:सहाय, निराश्रय के पालन-पोषण का जिम्मा ले सकते हैं। अन्न का दान करे | ॐ सुं शुक्राय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना भी लाभकारी सिद्ध होता है |
👉शनि | Saturn Planet
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शनि के अधिकार क्षेत्र में टांगे, जोड़ो की हड्डियाँ, मांस पेशियाँ, अंग, दांत, त्वचा व बाल, कान, घुटने आदि आते हैं. शनि के पीड़ित होने व इसकी दशा होने पर इन्हीं से संबंधित रोग हो सकते हैं. शारीरिक कमजोरी होना, मांस पेशियों का कमजोर होना, पेटदर्द होना, अंगों का घायल होना, त्वचा व पाँवों के रोग होना, जोड़ो का दर्द, अंधापन, बाल रुखे होना, मानसिक चिन्ताएँ होना, लकवा मार जाना, बहरापन आदि शनि के पीड़ित होने पर होता है.
👉उपाय : हनुमद आराधना करना, हनुमान जी को चोला अर्पित करना, हनुमान मंदिर में ध्वजा दान करना, बंदरो को चने खिलाना, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड का पाठ और ॐ हन हनुमते नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है | नाव की कील या काले घोड़े की नाल धारण करे | यदि कुंडली में शनि लग्न में हो तो भिखारी को ताँबे का सिक्का या बर्तन कभी न दें यदि देंगे तो पुत्र को कष्ट होगा। यदि शनि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला आदि न बनवाएँ।कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएँ। तेल में अपना मुख देख वह तेल दान कर दें (छाया दान करे ) । लोहा, काली उड़द, कोयला, तिल, जौ, काले वस्त्र, चमड़ा, काला सरसों आदि दान दें।
👉राहु | Rahu Planet
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राहु के अधिकार में पांव आते है, सांस लेना आता है, गरदन आती है. फेफड़ो की परेशानियाँ होती है. पाँवो से जुड़े रोग हो सकते हैं. अल्सर होता है, कोढ़ हो सकता है, सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. फोड़ा हो सकता है, मोतियाबिन्द होता है, हिचकी भी राहु के कारण होती है. हकलाना, स्पलीन का बढ़ना, विषाक्तता, दर्द होना, अण्डवृद्धि आदि रोग राहु के कारण होते हैं. यह कैंसर भी देता है.
👉उपाय : गोमेद धारण करे | दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करे | तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करे | जौ या अनाज को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएँ, कोयले को पानी में बहाएँ, मूली दान में देवें, भंगी को शराब, माँस दान में दें। सिर में चोटी बाँधकर रखें। सोते समय सर के पास किसी पत्र में जल भर कर रक्खे और सुबह किसी पेड़ में दाल दे,यह प्रयोग 43 दिन करे | इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, सुंदरकांड का पाठ और ॐ रं राहवे नमः का १०८ बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है |
👉केतु | Ketu Planet
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👉इसके अधिकार में उदर व पंजे आते हैं. फेफड़ो से संबंधित बीमारियाँ देता है. बुखार देता है, आँतों में कीड़े केतु के कारण होते हैं. वाणी दोष भी केतु की वजह से ही होता है. कानों में दोष भी केतु से होता है. आँखों का दर्द, पेट दर्द, फोड़े, शारीरिक कमजोरी, मस्तिष्क के रोग, वहम होना, न्यून रक्तचाप सभी केतु की वजह से होने वाले रोग होते हैं. केतु के कारण कुछ रोग ऎसे भी होते हैं जिनके कारणों का पता कभी नहीं चल पाता है.
👉उपाय : दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करे | तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करे | कान छिदवाएँ। सोते समय सर के पास किसी पत्र में जल भर कर रक्खे और सुबह किसी पेड़ में दाल दे,यह प्रयोग 43 दिन करे | इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, सुंदरकांड का पाठ और ॐ कें केतवे नमः का १०८ बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है | अपने खाने में से कुत्ते,कौव्वे को हिस्सा दें। तिल व कपिला गाय दान में दें। पक्षिओं को बाजरा दे | चिटिओं के लिए भोजन की व्यस्था करना अति महत्व्यपूर्ण है |
शास्त्रों के कुछ प्रमुख सूत्र :
कुंडली में ग्रहों की स्थिति पूरे जीवन में होने वाले रोगों की जानकारी देती हैं। जीवन में होने वाले रोगों को जानने के लिए ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए हमारे शास्त्रों मे कई सूत्र दिए हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार से हैं :
👉ज्योतिष में रोग विचार :
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★ षष्ठ स्थान
★ ग्रहों की स्थिति
★ राशियां
★ कारकग्रह
भावों का विश्लेषण :
👉◆ प्रथम भाव : प्रथम भाव से शारीरिक कष्टों की एवं स्वास्थ्य का विचार होता है।
👉◆ द्वितीय भाव : द्वितीय भाव आयु का व्ययसूचक हैं।
👉◆ तृतीय भाव : तृतीय भाव से आयु का विचार होता है।
👉◆ षष्ठ भाव : स्वास्थ्य , रोग के लिए । षष्ठ भाव का कारक मंगल, बुध ।
👉◆ सप्तम भाव : सप्तम भाव आयु का व्ययसूचक हैं।
👉◆ अष्टम भाव : अष्टम भाव का कारक गृह शनि एवं मंगल हैं। इस भाव से आयु एवं मृत्यु के कारक रोग का विचार होता है।
👉◆ द्वादश भाव : द्वादश भाव रोग शारीरिक शक्ति की हानि के साथ साथ रोगों का उपचार स्थल भी है।
भाव स्वामी की स्थिति से रोग :
षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिस भाव में होते है उससे संबद्ध अंग में पीड़ा हो सकती है।
किसी भी भाव का स्वामी ६, ८ या १२वें में स्थित हो तो उस भाव से सम्बंधित अंगों में पीड़ा होती है।
रोगों के कारण :
👉■ यदि लग्न एवं लग्नेश की स्थिति अशुभ हो।
👉■ यदि चंद्रमा का क्षीर्ण अथवा निर्बल हो या चन्द्रलग्न में पाप ग्रह बैठे हों ।
👉■ यदि लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो।
👉■ यदि पाप ग्रह का शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान हों।