राहु काल प्रत्येक दिवस उत्पन्न होता है,

राहु काल प्रत्येक दिवस उत्पन्न होता है, और वह प्रत्येक दिन भिन्न अवधि में वास करता है, जो इस प्रकार है:
रविवार को सायं 4:30 से 6:00 बजे तक।
सोमवार को प्रात:काल 7:30 से 9:00 बजे तक। मंगलवार को अपराह्न 3:00 से 4:30 बजे तक। बुधवार को दोपहर 12:00 से 1:30 बजे तक। गुरुवार को दोपहर 1:30 से 3:00 बजे तक। शुक्रवार को प्रात:10:30 से दोपहर 12:00 तक। शनिवार को प्रात: 9:00 से 10:30 बजे तक राहु काल की अवधि रहती है।

राहु किस दिशा और स्थान पर भ्रमण करता है, इसे जानते है जिसको पंथा राहु विचार कहा जाता है।

पंथा राहु विचार
दिन और रात को समान आठ भागों में विभाजित करने के पश्चात आधा-आधा प्रहर के अनुपात से विलोम क्रमानुसार राहु पूर्व से आरम्भ कर चारों दिशाओं में भ्रमण करता है।

पहले आधे प्रहर पूर्व में, दूसरे में वायव्य कोण में, तीसरे में दक्षिण में, चौथे में ईशान कोण में, पांचवें में पश्चिम में, छठे में अग्नि कोण में, सातवें में उत्तर में तथा आठवें में अर्ध प्रहर में नैऋत्य कोण में रहता है।

रविवार को नैऋत्य कोण में, सोमवार को उत्तर दिशा में, मंगलवार को आग्नेय कोण में, बुधवार को पश्चिम दिशा में, गुरुवार को ईशान कोण में, शुक्रवार को दक्षिण दिशा में, शनिवार को वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है।

सोमवार को यह दिन के द्वितीय भाग में, शनिवार को तीसरे भाग में, शुक्रवार को चतुर्थ भाग में, बुधवार को पांचवें भाग में, गुरुवार को छठे भाग में, मंगलवार को सातवें भाग में और रविवार के दिन आठवें भाग पर राहु का प्रभाव होता है।

यात्रा के दौरान राहु दाहिनी दिशा में होता है तो विजय मिलती है, योगिनी बायीं तरफ सिद्धि दायक होती है। राहु और योगिनी दोनों पीछे रहने पर शुभ माने गए है। चन्द्रमा सामने शुभ माना गया है।

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