{ कुंडली में केतु की स्थिति } { मनुष्य जीवन पर प्रभाव } { शुभ अशुभ फल }

वैदिक ज्योतिष में राहु केतु की तुलना सर्प से की गई है। राहु को उसका सिर और केतु को उसका पूंछ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, केतु ग्रह को अशुभ माना जाता है। हालांकि क्रूर ग्रह केतु हमेशा अशुभ फल ही देता है, ऐसा भी नहीं है। केतु ग्रह व्यक्ति को शुभ फल भी देता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, केतु को अध्यात्म, वैराग्य, मोक्ष, तांत्रिक आदि का कारक माना गया है। राहु को किसी भी राशि का स्वामित्व नहीं मिला है, लेकिन धनु राशि में केतु की उच्च राशि है, जबकि मिथुन राशि में यह नीच भाव में होता है।

केतु की उच्च राशि धनु होने के कारण यह इस राशि के जातकों को शुभ फल देता है। वैदिक ज्योतिष में केतु को मंगल के समान माना जाता है, इसलिए मंगल की राशि (मेष और वृश्चिक) में होने पर भी बुरा फल नहीं देता है। अगर जन्म कुंडली में भावों में केतु के फल की बात करें तो केतु दूसरे और आठवें भाव का कारक है। इसलिए यह कुंडली के इन भावों में होने पर शुभ फल ही देता है। अन्य भावों में केतु अशुभ फल देते हैं।
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{ मनुष्य जीवन पर प्रभाव }

  1. ज्योतिष में केतु ग्रह की कोई निश्चित राशि नहीं है। ऐसे में केतु जिस राशि में गोचर करता है वह उसी के अनुरूप फल देता है। इसलिए केतु का प्रथम भाव अथवा लग्न में फल को वहां स्थित राशि प्रभावित करती है। इसके प्रभाव से जातक अकेले रहना पसंद करता है लेकिन यदि लग्न भाव में वृश्चिक राशि हो तो जातक को इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं।
  2. अगर किसी जातक की कुंडली में केतु तृतीय, पंचम, षष्टम, नवम एवं द्वादश भाव में हो तो जातक को इसके बहुत हद तक अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
  3. अगर केतु गुरु ग्रह के साथ युति बनाता है तो व्यक्ति की कुंडली में इसके प्रभाव से राजयोग का निर्माण होता है।
  4. अगर जातक की कुंडली में केतु बली हो तो यह जातक के पैरों को मजबूत बनाता है। जातक को पैरों से संबंधित कोई रोग नहीं होता है। शुभ मंगल के साथ केतु की युति जातक को साहस प्रदान करती है।
  5. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में केतु के नीच का होने से जातक को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति के सामने अचानक कोई न कोई बाधा आ जाती है।
  6. अगर व्यक्ति किसी कार्य के लिए जो निर्णय लेता है तो उसमें उसे असफलता का सामना करना पड़ता है। केतु के कमजोर होने पर जातकों के पैरों में कमजोरी आती है।
  7. पीड़ित केतु के कारण जातक को नाना और मामा जी का प्यार नहीं मिल पाता है। राहु-केतु की स्थिति कुंडली में कालसर्प दोष बनाती है।
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{ केतु से संबंधित तथ्य }

रोग-पैर, कान, रीढ़ की हड्डी, घुटने, लिंग,
किडनी, जोड़ों के दर्द

आदि रोगों को ज्योतिष में केतु ग्रह के द्वारा दर्शाया जाता है।
कार्यक्षेत्र-समाज सेवा, धर्म अध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े सभी कार्यों को ज्योतिष में केतु ग्रह के द्वारा दर्शाया जाता है।

उत्पाद-काले रंग के पुष्प, काला कंबल, काले तिल, लहसुनिया पत्थर आदि उत्पाद केतु से संबंधित हैं।

स्थान-सेवाश्रम, आध्यात्मिक एवं धार्मिक स्थान केतु से संबंधित होते हैं।

पशु-पक्षी तथा जानवर जहरीले जीव एवं काले अथवा भूरे रंग के पशु पक्षियों को राहु के द्वारा दर्शाया जाता है।

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जड़ी-अश्वगंधा की जड़।

रत्न-लहसुनिया।

रुद्राक्ष-नौ मुखी रुद्राक्ष।

यंत्र-केतु यंत्र।

रंग-भूरा।

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