🔴कान की बीमारी से संबंधित भाव तीसरा और एकादश भाव है. तीसरे भाव से दायाँ कान व एकादश भाव से बायाँ कान देखा जाता है. इसके अलावा तीसरे से सप्तम भाव और एकादश से सप्तम भाव का भी आंकलन किया जाता है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जन्म कुंडली के तीसरे, पांचवें, नवम व एकादश भाव को कान की बीमारी के लिए देखा जाता है.
🔴बुध व बृहस्पति को श्रवण शक्ति का नैसर्गिक कारक ग्रह माना जाता है. आइए अब कान की बीमारी से संबंधित योगों के बारे में जानने का प्रयास करें कि कब यह अपना फल दे सकते हैं.
🌳जन्म कुंडली में शुक्र व बुध की स्थिति 12वें भाव में हो तब दाएँ कान से संबंधित रोग हो सकते हैं.
🌳पाप ग्रह यदि जन्म कुंडली के तीसरे, पांचवें, नवम व एकादश में स्थित हों और कोई भी शुभ ग्रह देख नहीं रहा हो तब कान से जुड़े रोग हो सकते हैं.
🌳जन्म कुंडली में शनि जहाँ स्थित है उससे चतुर्थ भाव में बुध छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो.
🌳तृतीयेश, चतुर्थेश व षष्ठेश तीनो एक साथ कुंभ राशि में स्थित हों तब भी कान से संबंधित बीमारी हो सकती है.
जन्म कुंडली के लग्न में कुंभ राशि में शुक्र स्थित हो और मंगल ग्रह शनि के साथ छठे भाव में हो.
🌳कुंडली में शुक्र, वृष या धनु लग्न में स्थित हो और पीड़ित चंद्रमा शुक्र को देख रहा हो.
🌳छठे भाव का स्वामी और बुध दोनो एक साथ छठे भाव में स्थित हों और शनि से दृष्ट भी हों.
🌳व्यक्ति का यदि रात्रि का जन्म है, शुक्र पंचम भाव में व बुध छठे भाव में स्थित हो तब कान से जुड़ी बीमारी हो सकती है.
🌳बुध व षष्ठेश दोनो चतुर्थ भाव में हो और शनि लग्न में हो तब व्यक्ति को कान के भीतर बीमारी बीमारी हो सकती है.
🌳चंद्रमा, मंगल, बुध तीनो ही राहु/केतु अक्ष पर स्थित हों और यह संबंध तीसरे व एकादश भाव में बन रहा हो तब भी व्यक्ति को कान से संबंधित आंतरिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है.
🌳जन्म कुंडली में नीच का शुक्र राहु के साथ तीसरे या एकादश भाव में हो.
🌳बुध तीसरे भाव में सूर्य के साथ 10 अंशो के भीतर स्थित हो या छठे भाव में स्थित हो या एकादश भाव में स्थित हो. साथ ही मंगल व शनि का परस्पर दृष्टि संबंध बन रहा हो.
🌳द्वादश भावों में शुक्र स्थित हो जातक को बाएं कान में कम सुनाई देता है
🌳यदि द्वितीय अथवा द्वादश भाव में शुक्र अथवा मंगल हो तो जातक के कान में पीड़ा होती है कान के गड्ढे में विकार होता है
🌳यदि तृतीय अथवा एकादश भाव में गुरु शनि और मंगल से युक्त अथवा दृष्ट हो तो कर्ण विकार की संभावना रहती है
🌳मंगल द्वितीयेश के साथ जन्म लग्न में बैठा हो। अथवा द्वितीयेश जिस भाव में स्थित हो। उस भाव का स्वामी यदि अष्टम भाव में हो तो जातक के कानों में पीड़ा होती है।
🌳शुक्र षष्ठेश होकर लग्न में बैठा हो और उस पर चंद्रमा तथा पाप ग्रह की दृष्टि हुई हो तो जातक के दाएं कान में और यदि जातक का जन्म रात्रि में हुआ हो . बुध षष्ठ भाव में एवं शुक्र दशम भाव में हो तो जातक के बाए कान में रोग होता है
🌳तृतीय भाव में स्थित पाप ग्रह अथवा तृतीय भाव किसी पाप ग्रह से दृष्ट हो अथवा तृतीय अथवा एकादश भाव में स्थित पाप ग्रह पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो तो अथवा लगन में तृतीयेश एवं मंगल की युति हो तो भी जातक को कर्ण रोग होता है