कहानी के माध्यम से केतु को समझने का प्रयास करते हैं

एक बार कश्यप ऋषि संध्या कर रहे थे उसी समय उनकी पत्नी सिंहिका ऋतुकाल का समय लेकर सन्तान की इच्छा से कश्यप ऋषि के पास आ कर संभोग की इच्छा की उस समय सन्ध्या का समय होने के कारण कश्यप ऋषि ने समझाया पर सिंहिका नही मानी उस समय एक मान्यता थी कि यदि ऋतुकाल से निवृत होकर पत्नी सन्तान की इच्छा लेकर आये और पति पूरा न करे तो उसे पाप समझा जाता है ओर पति को कई वर्षों तक प्रायश्चित करना पड़ता है इस कारण से कश्यप ऋषि जी कर्तव्यबद्ध थे उनको उसी समय पत्नी की इच्छा पूर्ति की किंतु संध्याकाल पुत्र कामना हेतु सम्भोग अच्छा नही माना जाता है ऐसे स्थति में पुत्र असुर स्वभाव का पुत्र होता है लेकिन कश्यप ऋषि सब कुछ जानते हुए भी विवश थे इसी वजह से उन्होंने श्राप दे दिया कि इस पुत्र का भगवान विष्णु के हाथ से इसका धड़ सिर से अलग कर दिया जाएगा इस प्रकार का श्राप सुनकर कश्यप ऋषि की पत्नी सिंहिका विलाप करते हुए माफी मांगने लगी तब कश्यप ऋषि को दया आ गई और बोले की इसका पुत्र का सिर जरूर अलग होगा पर अमृत पीने के कारण इसकी मृत्यु नहीं होगी ओर इसको देवताओ में स्थान मिलेगा ओर आपके पुत्र के दो भाग हो जायेगे एक धड़ के रूप में एक सिर के रूप में सिर राहु का रूप में होगा और केतु धड़ के रुप में जाना जाएगा यानी कि सिंहिका का पुत्र अपने पिता से श्रापित है पिता से श्रापित होने के वजह से राहु ,केतु पितृ दोष के कारण माने जाते हैं
अब आगे की कहानी से समझते हैं राहु और केतु के विषय में
सिंहिका ने समय आने पर एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम स्वर्भानु रखा गया एक समय की बात थी की कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी आदिति के पुत्र सूर्य यानी सौतेले भाई सूर्य से लड़ाई हुई तो सूर्य के अंदर अधिक तेज होने से स्वर्भानु उस तेज सहन नही कर पा रहा जिसकी वजह से भयंकर युद्ध हुआ उसमें स्वर्भानु हार गया इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने ब्रह्मा की तपस्या की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने वरदान देने के लिए कहा स्वर्भानु ने वरदान मांगा कि मुझे अमृतत्व और सूर्य व चंद्र के पुंज प्रकाश को निगलने की क्षमता आ जाए और उन्हें बल हीन बना दूं तब ब्रह्मा ने कहा मैं तुम्हें दोनों वरदान देता हूं पर उसके लिए आपको आप के दो रूप होना जरूरी है जब आप उनका तेजपुंज को नष्ट करेंगे उनके सामने वह साथ में एक रूप होना चाहिए राहु ने हां कर दी फिर समुद्र मंथन का प्रकरण हुआ जिसमें भगवान विष्णु ने स्वर्भानु उसका सिर अलग कर दिया जब सिर अलग कर रहे थे तब नीचे का धड़ हाथ जोड़कर खड़ा हुआ था उस रूप को देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और बोलें की जो आपका सिर रूप मैं अहंकार था वह अलग कर दिया और तुमने अमृत पीने की वजह से अमृत हृदय में होने की वजह से तुम निष्पाप सरल हृदय हो जाओगे यानी कि यहाँ एक बात समझते है अंहकार सदैव बुद्धि से होता है यहाँ स्वर्भानु का सिर अलग कर दिया है तो इसका मतलब अंहकार राहु का रूप बन गया और अमृत पीने के बाद अमृत ह्रदय पहुचने के कारण से केतु का ह्रदय निर्मल होगया लेकिन सिर रूपी राहु जीवित तो रहा पर गले से नीचे अमृत चले जाने के कारण से राहु का सिर वैसा ही रहा अर्थात अहंकार , घमंडी, द्वेषी , ओर क्रोधी ही रहा जबकि केतु के अंदर ह्रदय में अमृत आ जाने की वजह से वह निर्मल हो गया उसके अंदर अहंकार ,घमंड , द्वेष ओर क्रोध नही रहा यहां एक और बात समझने की जरूरत है अहंकार ,क्रोध, घमंड ये सब बुद्धि से आते है यहाँ पर केतु के सिर नही है तो बुद्धि भी नहीं होगी जब बुद्धि ही नही है तो चालाकी , चतुराई होने का सवाल ही नही उठता केतु के ह्रदय है ह्रदय में ममता ,दया ,करुणा ,भावुकता होती हैं इससे ये मालूम होता है कि हृदय से बनने वाले गुण केतु के अंदर होंगे
अब तीसरी कहानी से केतु की आगे की बात जानने की कोशिश करते हैं केतु ने सदाशिव की तपस्या की जिससे शिव जी प्रशन्न हो गए ओर प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा तब केतु बोला प्रभु मेरा धड़ से सिर अलग हो जाने के कारण धड़ किसी काम का नही होता मेरा जीवन ही अंधकार मय हो गया में अब क्या करूँ आप कोई मेरे लिए कुछ उपाय करो तो इस पर शिव जी ने अपनी तेजपुंज शक्तिशाली किरणों से युक्त मणि उसके सिर पर लगा दी और कहा अब आप जिस देवता के साथ या ग्रह के साथ बैठोगे उसके बल को बढ़ा दोगे वह आपके इस मणि की शक्ति से अपने बल को बढ़ाएगा अब यहाँ केतु के बल को समझना है केतु जिसके साथ बैठता है उसके बल को बढ़ाता है जिसके कारण शुभ ग्रह होने पर शुभ फल को बढ़ाएगा और पाप ग्रह होने पर पाप फल को बढ़ाएगा और राहु में यह अंतर है की राहु जिसके साथ बैठेगा उस के बल को लेकर अपने बल को बढ़ाएगा और पाप प्रभाव दिखाएगा जिससे जातक भ्रमित दुखी ,बुद्धिहीन, अहंकारी, झगड़ालू प्रवृत्ति होता है सभी ज्योतिष शास्त्र में केतु को शुभ माना है परंतु फलित करते समय उसे पाप संज्ञा दी है केतु का फल करते समय इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए उस पर किस ग्रह का प्रभाव है वह किस भाव में बैठा है वह किस राशि में है वह उसके अनुसार फल देने में समर्थ रखता है वैसे वेदों में सूर्य की राशिमो को केतु कहा गया है यदि वेद के इन शब्दों को सही माने तो केतु सूर्य की राशिमो होने की वजह से वह जीवनदाता माना जायेगा क्योकि की सूर्य की किरणों से ही पूरा व्रह्माण्ड प्रकाशित होता है उसी राशिमो से जीव का जीवन है

नोट – ये केतु राहु संबंधित कहानी ओल्ड क्लासिक्स से ली गई है , केतु को जाग्रत करना चाहते है तो सरल बने सहज बने , क्रूरता धूर्तता आसक्तियों का त्याग करे और खुद को प्रभु चरणों में समर्पित करे , अध्यात्म से जुड़े मेडिटेशन करे , मन में दया करुणा संतोष रखे , असंतोष को ना पनपने दे ।
🕉️ गौतम बुद्ध जी और महाभारत में विधुर जी केतु का साक्षात उदहारण है ।

🍁 हेमन्त थरेजा – ज्योतिष मार्गदर्शक 🍁

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