ज्योतिष के अनुसार आत्मकारक ग्रह क्या होते हैं?
ज्योतिष सीखने के जिज्ञासु पाठकों के लिए आत्म कारक की जानकारी विशेष महत्वपूर्ण है
मन में छिपी सूक्ष्म इच्छाओं और कर्मों को पूरा करने के लिए व्यक्ति को जन्म लेना पड़ता है, जिंदगी में बहुत कम लोग होते हैं जिनको अपनी जिंदगी का लक्ष्य पता होता है ,जिनको यह पता होता है कि,” जीवन जिया कैसे जाता है ” , अपनी आत्मा से साक्षात्कार कर लेना ही मानव जीवन का परम लक्ष्य है ” आत्मकारक ” ग्रह की जानकारी व्यक्ति को उन्नति दिलाती है
“जिस ग्रह के अंश सबसे अधिक होते हैं वह ग्रह कुण्डली में आत्मकारक की उपाधि पाता है”
जिस प्रकार लग्न से व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में पूर्ण जानकारी मिलती है ठीक उसी प्रकार आत्मकारक ग्रह के द्वारा व्यक्ति के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हासिल होती है.
व्यक्ति का मानसिक स्तर,
बुद्धि का विकास,
आंतरिक तथ बाह्य रुपरेखा,
व्यक्ति के सुख-दु:ख आदि
के बारे में आत्मकारक ग्रह से पता चलता है.
व्यक्ति के सभी क्रियाकलापों पर आत्म कारक ग्रह का पूरा नियंत्रण होता है
यदि आत्म कारक ग्रह प्रतिकूल है तो अन्य ( कारक ) ग्रह अपना पूर्ण सुफल नहीं दे सकते हैं,
यदि आत्म कारक अनुकूल है अन्य कारक अपने अशुभ प्रभावों से आत्म कारक के द्वारा होने वाले कार्यों की सिद्धि को असफलता में नहीं बदल सकते इसलिए आत्मकारक ग्रह का विशेष महत्व है
आत्म कारक ग्रह ही हमारे जन्म के अस्तित्व का कारण बन कर हमें इस जीवन में लाया है
जैमिनी ऋषि के मतानुसार लग्न से भी अधिक महत्व आत्मकारक ग्रह का है।
प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार भविष्य निर्माण में आत्मकारक ग्रह की स्थिति निर्णायक होती है।
आत्मकारक ग्रह व्यक्ति के आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों लक्ष्यों को दर्शाता है |
व्यक्ति के स्वभाव के बारे में जानकारी भी आत्मकारक से ही मिलती है
अन्य सभी कारकों में आत्म कारक प्रधान कारक है, सूर्य से लेकर सातों ग्रहों में जिसके अंश सबसे ज्यादा होते हैं, वही ग्रह कुंडली में आत्मकारक ग्रह कहलाता है।राहु और केतु को इसमें शामिल नहीं करते। क्योंकि राहु और केतु के अंशादि समान ही होते हैं।
ग्रहों के अंशों के आधार पर आत्मकारक ग्रह का निर्धारण किया जाता है।
सबसे अधिक अंश वाला ग्रह आत्मकारक,
उससे कम अंश वाला ग्रह अमात्यकारक,
उससे कम अंश वाला भ्रातकारक,
उससे कम अंश वाला ग्रह मातृकारक,
उससे कम अंश वाला ग्रह पुत्रकारक,
उससे कम अंश वाला ग्रह पितृकारक,
उससे कम अंश वाला ग्रह जातिकारक,
उससे कम अंश वाला ग्रह दाराकारक है।
( कुछ आचार्यों के मतानुसार मातृकारक ग्रह ही पुत्रकारक होता है।इस प्रकार कुछ आचार्य में पितृकारक ग्रह को लेकर भी मतभेद है )
आत्मकारक व अमात्यकारक ग्रह मिलकर राजयोग का निर्माण करते हैं।
सटीक भविष्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कुंडली का आत्म कारक ग्रह अवश्य ही जान लेना चाहिए